नई दिल्ली : अभिनेता से राजनेता बने मनोज तिवारी ने दिल्ली प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष के तौर पर दो साल पूरे कर लिए। उनका कार्यकाल पूरी तरह से उतार चढ़ाव भरा रहा। इन दो वर्षों में उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर पार्टी को कई सफलताएं दिलाईं, तो वहीं उनके कुछ निर्णयों की वजह से पार्टी को प्रतिकूल स्थिति का भी सामना करना पड़ा।
मनोज तिवारी ने ठीक दो साल पहले 30 नवंबर को ही दिल्ली प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष की कमान संभाली थी। इसके बाद उनके नेतृत्व में पार्टी ने भयंकर विरोध के बाद भी तीनों नगर निगम का चुनाव जीता। हालांकि इस दौरान बवाना उपचुनाव में उन्हें हार का भी मुंह देखना पड़ा। इन दो वर्षों में उन्हें दिल्ली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री अरविंदर सिंह लवली और अमित मलिक को पार्टी में शामिल कराकर प्रदेश से कांग्रेस के सफाए की शुरुआत और पार्टी में अपने कद को और भी बुलंद किया, लेकिन इनके वापस जाने से तिवारी के किए कराए पर पानी फिर गया।
इन दो वर्षों में प्रदेश में पूर्वांचलियों के जुड़ने से पार्टी के और मजबूत होने के दावे किए गए , तो वहीं कई बार उनके ही समय पूर्व अध्यक्ष पद से हटाऐ जाने और टिकट कटने की चर्चाएं भी गर्म होती रहीं। इन दो वर्षों में पार्टी के नेता भले ही उनका साथ छोड़ गए हों, लेकिन विवादों ने भरपूर साथ निभाया।
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स्कूल के एक कार्यक्रम में शिक्षिका को गाना गाने की फरमाइश पर सार्वजनिक तौर पर डांटने का मामला हो, या नोटबंदी के बाद जनता की भावनाओं के मजाक उड़ाने का, सिग्नेचर ब्रिज के उद्घाटन पर बिना बुलाए जाने की घोषणा का मामला हो या अपने लोकसभा क्षेत्र में सील तोड़ने का, शायद ही कोई महीना ऐसा गया हो, जब कोई न कोई नया विवाद उनके साथ न जुड़ा हो।
इन दो वर्षों में अगर कुछ एक समान रहा तो, प्रदेश के उन वरिष्ठ नेताओं का उनके प्रति रवैया, जिसने उन्हें कभी अपना नेता माना ही नहीं। राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के स्पष्ट निर्देश के बाद भी इन नेताओं ने इनसे और इनके कार्यक्रमों से पूरी तरह से दूरी बना कर रखी। दो वर्ष पूरे होने पर उनके समर्थकों की तरफ से एक वीडियो भी शेयर किया जा रहा है, जिसमें उन्हें दिल्ली का भावी मुख्यमंत्री बताया जा रहा है।
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