विवादास्पद नागरिकता संशोधन विधेयक पर संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान चर्चा होने की संभावना नहीं है। सूत्रों ने रविवार को यह जानकारी दी। दरअसल, संसद का शीतकालीन सत्र 8 जनवरी को समाप्त होने जा रहा है। विधेयक की पड़ताल कर रही संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की बैठक सोमवार को होगी। विधेयक को लोकसभा को सौंपे जाने से पहले प्रस्तावित विधान को अंतिम रूप देने के लिए यह बैठक होगी।
यह विधेयक अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों – हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय – के भारत में 12 साल के बजाय 6 साल निवास करने तथा कोई उपयुक्त दस्तावेज नहीं रखने की स्थिति में भी उन्हें भारतीय नागरिकता प्रदान करने के लिए नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन करने का मार्ग प्रशस्त करता है। यह बीजेपी का 2014 का चुनावी वादा था। विधेयक से जुड़ी चर्चा से करीबी तौर पर जुड़े एक सूत्र ने बताया कि विधेयक को लोकसभा में 7 या 7जनवरी को पेश किए जाने की संभावना है।
निचले सदन में इसे पारित करने से पहले इस पर चर्चा के लिए बहुम कम समय मिलेगा और फिर राज्य सभा में भी नहीं यह नहीं जा सकेगा।’’ जेपीसी अध्यक्ष राजेंद्र अग्रवाल ने बताया कि समिति हर उपबंध की पड़ताल के बाद आमराय के जरिए विधेयक को अंतिम रूप देने की कोशिश करेगी। उन्होंने कहा, ‘‘यदि आमराय पर नहीं पहुंचा जा सका तो हम मतदान कराएंगे, जो संसद के लिए एक मानक कार्यप्रणाली है।’’ 30 सदस्यीय समिति में अग्रवाल सहित बीजेपी के 14, जबकि कांग्रेस के चार सदस्य हैं।
वहीं, तृणमूल कांग्रेस और बीजद के दो-दो सांसद हैं। साथ ही, शिवसेना, जदयू, टीआरएस, तेदेपा, माकपा, अन्नाद्रमुक, सपा और बसपा के एक-एक सदस्य हैं। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, माकपा और कुछ अन्य दल इस विधेयक का विरोध करते हुए दावा कर रहे हैं कि नागरिकता धर्म के आधार पर नहीं दी जा सकती है। सूत्रों ने बताया, ‘‘यदि मतदान होता है तो बीजेपी के कुछ विवादित उपबंधों को शामिल करा सकती है। सोमवार की बैठक बहुत अहम है।’’
दिलचस्प है कि राजग के एक सदस्य ने असम को इस विधान के दायरे से बाहर करने का सुझाव दिया है। उल्लेखनीय है कि असम में इस विधेयक का सख्त विरोध हुआ है। विपक्षी दलों के कई सदस्यों ने कहा है कि नागरिकता एक संवैधानिक प्रावधान है और यह धर्म के आधार पर नहीं हो सकती है क्योंकि भारत एक पंथनिरपेक्ष देश है। समिति में विपक्ष के एक सदस्य ने कहा कि यह विधेयक असम में स्थिति का हल करने के बजाय पहले से तनाव का सामना कर रहे राज्य में हालात को और गंभीर बनाता है।
अग्रवाल ने कहा कि वे रिपोर्ट को इस सत्र में सौंपने के लिए आबद्ध हैं क्योंकि यह मौजूदा लोकसभा का अंतिम शीतकालीन सत्र है। मेघालय और मिजोरम की सरकारों ने भी नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध किया है। बहरहाल, समिति अपनी रिपोर्ट सौंपने के लिए लोकसभा स्पीकर से छह बार समय विस्तार करा चुकी है।
from Punjab Kesari (पंजाब केसरी) http://bit.ly/2BQ7XR8
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