पिथौरागढ़ : भारत और नेपाल सीमा को अलग करने वाली काली नदी पर पंचेश्वर बांध बनाया जाना प्रस्तावित है। माना जा रहा है कि ये बांध विश्व के सबसे बड़े बांधों में शुमार होने के साथ भारत-नेपाल की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करेगा। लेकिन स्थानीय लोगों को अब पैतृक संपत्ति के साथ दो देशों की करीब 89 धार्मिक स्थल के वजूद खत्म होने का डर सताने लगा है। इन धार्मिक स्थलों से लोगों की आस्था सदियों से जुड़ी हुई है। पिथौरागढ़ जिले में भारत की सरयू और नेपाल की काली नदी पर पंचेश्वर बांध प्रस्तावित है।
इस नदी पर करीब 6 हजार मेगावॉट हाइड्रो प्रोजेक्ट लगया जाएगा, जिससे भारत और नेपाल की 134 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र इसके डूब क्षेत्र में आएगा। इसमें 123 गांवों के साथ ही कई ऐतिहासिक धार्मिक स्थल भी जलमग्न हो जाएंगे। 5 नदियों के संगम पर मौजूद पंचेश्वर धाम दोनों मुल्कों की आस्था का प्रमुख केन्द्र है। पंचेश्वर धाम को भगवान शिव का धाम कहा जाता है। ये एक ऐसा पवित्र स्थल है, जहां साल भर सभी तरह के धार्मिक कार्य चलते रहते हैं। इसके अलावा रामेश्वर और तालेश्वर जैसे प्रसिद्ध भारतीय धार्मिक केन्द्र भी डूब क्षेत्र में आ रहे हैं।
पंचेश्वर बांध उपसमिति के सदस्य और कैबिनेट मंत्री प्रकाश पंत का कहना है कि धार्मिक महत्व के मंदिरों को अन्य जगह स्थापित करने के लिए भी पुनर्वास नीति में पैकेज की व्यवस्था की गयी है। पंचेश्वर निवासी नामदेव पंत का कहना है कि पंचेश्वर बांध से उनकी पौराणिक आस्था जुड़ी है। ऐसे में सरकार अस्तित्व को नुकसान पहुंचा रही है। उनका कहना है कि उनकी आस्था के सामने सरकार को झुकना होगा। बांध की मौजूदा डीपीआर में 3 बड़े धार्मिक स्थलों के विस्थापन का तो जिक्र है। लेकिन शेष 86 धार्मिक केन्द्रों का क्या होगा? इसको लेकर अभी भी कोई नीति नहीं बन पाई है।
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