Sunday, March 31, 2019

न्यायपालिका में दलितों, OBC, अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व का वादा कर सकती है कांग्रेस

न्यूनतम आय योजना (न्याय) और स्वास्थ्य के अधिकार के चुनावी वादे के बाद कांग्रेस अब अपने घोषणापत्र में दलित, ओबीसी और अल्पसंख्यक समाज के लिए कुछ बड़ी घोषणाओं की तैयारी में है जिनमें न्यायपालिका, खासकर ऊपरी अदालतों में इन वर्गों के लिए प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का वादा प्रमुख हो सकता है।

सूत्रों के मुताबिक, गत 26 मार्च को पार्टी की शीर्ष नीति निर्धारण इकाई कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में ”न्याय” को हरी झंडी देने के साथ ही अनुसूचित जाति-जनजाति, ओबीसी और अल्पसंख्यक वर्गों के संदर्भ में कई बिंदुओं एवं सुझावों पर गौर किया गया जिनमें से कई को स्वीकृति प्रदान की गई।

इस बैठक पी चिदंबरम की अध्यक्षता वाली समिति की ओर से तैयार घोषणापत्र के मसौदे को मंजूरी दी गई। अगले कुछ दिनों के भीतर पार्टी अपना घोषणापत्र जारी कर सकती है। बैठक में मौजूद रहे पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया, ”सीडब्ल्यूसी की बैठक में इस सुझाव पर सहमति बनी कि न्यायपालिका और खासतौर पर ऊपरी अदालतों में अनुसूचित जाति-जनजाति और ओबीसी का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होना चाहिए। पूरी संभावना है कि घोषणापत्र में इसे जगह मिले।”

यह पूछे जाने पर पार्टी यह प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का क्या तरीका अपनाएगी तो उन्होंने कहा, ”यह सुझाव था कि न्यायपालिका के साथ समन्वय एवं सहमति बनाकर न्यायिक नियुक्ति आयोग या कोई और व्यवस्था बनाई जाए। इस पर पूरी सहमति थी कि ऐसा करने में न्यायपालिका की स्वतंत्रता और स्वायत्तता पर किसी तरह कोई असर नहीं होना चाहिए।”

गौरतलब है कि वर्तमान नरेंद्र मोदी सरकार ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम-2014 के माध्यम से कुछ इसी तरह की पहल की थी लेकिन उच्चतम न्यायालय ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त कर दिया था। कांग्रेस नेता ने कहा, ”घोषणापत्र में अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी वर्गों के लिए कुछ और वादे भी किए जा सकते हैं।

मसलन, इन वर्गों में जिनके सिर पर छत नहीं है उन्हें मकान या प्लॉट देने की बात पर सहमति बनी है।” वैसे, कांग्रेस के अनुसूचित विभाग ने समाज से जुड़े विभिन्न बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और संस्थाओं से गहन विचार-विमर्श के बाद कुछ हफ्ते पहले ही पार्टी की घोषणापत्र समिति के पास कई सुझाव भेजे थे।

इनमें निजी क्षेत्र में आरक्षण, पदोन्नति में आरक्षण, सभी राज्यों एवं केन्द्र सरकार की संस्थाओं एवं विभागों को मौजूदा आरक्षण व्यवस्था को सही ढंग से लागू करने, भूखण्ड एवं आवास की व्यवस्था करने और कार्यस्थलों पर अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के लोगों का जातिगत उत्पीड़न रोकने की प्रभावी व्यवस्था बनाने के सुझाव प्रमुख हैं।



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