जर्मनी के वाइस चांसलर ओलाफ स्कॉल्ज ने प्रस्ताव रखा है कि फ्रांस को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में अपनी स्थाई सीट यूरोपीय संघ (ईयू) के लिए छोड़ देनी चाहिए। यदि जर्मनी स्कॉल्ज के इस प्रस्ताव का अनुसरण करता है तो यह प्रस्ताव जर्मनी के भारत, ब्राजील और जापान के साथ उस साझा रुख से अलग है, जिसमें सुरक्षा परिषद में स्थाई सीटों की संख्या बढ़ाने की बात कही गई है।
भारत, ब्राजील, जर्मनी और जापान के समूह को जी4 कहा जाता है और यह सुरक्षा परिषद में सुधारों की अग्रणी आवाज रहा है और इस समूह के सदस्य आपस में एक-दूसरे के स्थाई सीटों के दावों का समर्थन भी करते हैं। शोल्ज ने बुधवार को बर्लिन में कहा, ‘ईयू को एक सुर में बोलने का मौका देने के लिए सुरक्षा परिषद में फ्रांस की सीट ईयू को दी जा सकती है।’ न ही जर्मनी के विदेश मंत्री हेइको मास ने और न ही जर्मनी की सरकार ने सार्वजनिक रूप से इस प्रस्ताव का समर्थन किया है।
फ्रांस सरकार ने औपचारिक रूप से इस प्रस्ताव पर कई प्रतिक्रिया नहीं दी है लेकिन अमेरिका में फ्रांस के राजदूत गेरार्ड अरॉड ने इस प्रस्ताव को खारिज किया है। उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘यह कानूनी रूप से असंभव है क्योंकि यह संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के विपरीत हैं। यह बदलाव राजनीतिक रूप से असंभव है।’ स्कॉल्ज ने अपने संबोधन में यूरोपीय देशों की एकता पर ध्यान केंद्रित किया।
उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते से अमेरिका के अलग होने के ट्रंप के फैसले का उल्लेख करते हुए कहा, ‘यदि हम वैश्विक प्रभावकर्ता के रूप में प्रभाव डालने जा रहे हैं तो हमें यूरोपीय स्तर पर आगे बढ़ना होगा।’ उन्होंने एक साझा विदेश नीति का आह्वान करते हुए कहा, ‘ईयू को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक सुर में बोलना चाहिए।’
वह कहते हैं, ‘फ्रांस की सीट ईयू को देकर ऐसा किया जा सकता है और इसके बदले में फ्रांस के पास संयुक्त राष्ट्र में ईयू राजदूत को नियुक्त करने का अधिकार होगा।’ उन्होंने स्वीकार किया कि इसके लिए फ्रांस को रजामंद करना होगा लेकिन यह बहुत ही बोल्ड और समझदारी भरा लक्ष्य होगा।
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