बिहार का जंगलराज तो काफी कुख्यात रहा है। जंगलराज में अपहरण एक उद्योग बन चुका था। अपराधियों को कानून का कोई खौफ नहीं था। यहां तक कि पुलिस वाले भी अपराधियों से खौफ खाने लगे थे। जंगलराज में ऐसे-ऐसे वीभत्स कांड हुए कि चारों तरफ त्राहि-त्राहि मच गई। राजनीतिज्ञों और अपराधियों की सांठगांठ इतनी गहरी थी कि पुलिस भी उन पर हाथ डालने से बचती थी। पुलिस की भूमिका जंगलराज के दौरान भी अपराधियों को बचाने की थी। नीतीश कुमार शासन में भी पुलिस की भूमिका कोई अलग नहीं। सुशासन बाबू के शासन में भी पुलिस कोई अलग भूमिका नहीं निभा पा रही, यह आश्चर्य का विषय है। इसका अर्थ यही है कि सुशासन बाबू का शासन कुशासन की ओर अग्रसर है। पिछले दो दिन के समाचार पत्रों की खबरें देखें तो आपको अनुमान लग जाएगा कि सुशासन बाबू की सरकार कितनी असंवेदनशील हो चुकी है।
मुजफ्फरपुर शैल्टर होम में बालिकाओं से हुई यौन हिंसा की घटना ने देशभर के लोगों के भीतर आक्रोश पैदा किया था। मुजफ्फपुर शैल्टर होम कांड के तार नीतीश कुमार की मंत्री रही मंजू वर्मा के पति के साथ जुड़े थे। शैल्टर होम के संचालक ब्रजेश सिंह के प्रभावशाली व्यक्तियों से घनिष्ठ सम्पर्क थे। मुजफ्फरपुर कांड के बाद बिहार के अन्य शैल्टर होमों के भी ऐसे कांड सामने आने लगे। कमजोर सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि की बच्चियां बालिका गृहों तक इसलिए पहुंचती हैं क्योंकि घर से समाज तक उन्हें कहीं भी सुरक्षित ठिकाना नहीं मिल पाता। मजबूरी में शैल्टर होम में उन्हें शरण लेनी पड़ती है लेकिन शैल्टर होमों के संचालकाें ने उन्हें यौन शोषण में धकेल दिया। उन्हें प्रभावशाली व्यक्तियों के आगे परोस दिया जाता रहा। कम उम्र की बच्चियों के साथ बलात्कार आैर उत्पीड़न की ऐसी दास्तानें सामने आईं, जिससे लोग दहल गए। पहले तो यौन शोषण कांड के आरोपी की पत्नी और बिहार सरकार की पूर्व मंत्री मंजू वर्मा लगभग चार माह तक गायब रही। पुलिस ने उसे गिरफ्तार करने की कोशिश ही नहीं की।
बिहार सरकार ने भी आरोपियों के प्रति नरम रुख अपनाया। जब सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार और पुलिस को फटकार लगाई तो मंजू वर्मा ने मुंह ढांप कर आत्मसमर्पण कर दिया। हैरानी वाली बात तो यह है कि बिहार पुलिस ने जो प्राथमिकी दर्ज की, उसमें बेहद कमजोर धाराएं लगाई गईं। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर भी बिहार सरकार को जमकर फटकार लगाई आैर राज्य के मुख्य सचिव से पूछा कि मामले में इतनी देरी से एफआईआर दर्ज क्यों की गई? शैल्टर होम में बच्चों के साथ यौन हिंसा हुई लेकिन पुलिस ने पॉक्सो एक्ट क्यों नहीं लगाया? सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव से 24 घंटे में एफआईआर में बदलाव करने को कहा। पुलिस की भूमिका अमानवीय और बेहद शर्मनाक रही। एफआईआर में यौन शोषण और वित्तीय गड़बड़ी का उल्लेख तक नहीं किया गया। हैरानी की बात तो यह भी है कि मुजफ्फरपुर शैल्टर होम यौन शोेषण कांड का खुलासा होने के बावजूद आरोपी संचालक और अन्य शैल्टर होमों को सरकारी अनुदान दिया जाता रहा। यौन शोषण कांड का खुलासा भी सरकार या पुलिस ने नहीं किया था।
खुलासा तो तब हुआ था जब टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज ने शैल्टर होमों में जाकर सर्वे किया तो बालिकाओं ने उनके साथ हो रहे क्रूर व्यवहार के बारे में जानकारी दी। शैल्टर होमों की नियमित जांच और गड़बड़ी पाए जाने पर कड़ी कार्रवाई की जिम्मेदारी सरकार की है लेकिन बिहार सरकार आंखें मूंदे रही और जब खुलासा हुआ तो भी सरकार ने संवेदनहीनता का परिचय दिया। सरकार की संवेदनहीनता को देखते हुए ही सुप्रीम कोर्ट ने तीखा सवाल किया कि क्या बिहार सरकार की नजर में वे देश के बच्चे नहीं हैं। अन्ततः सुप्रीम कोर्ट को लगा कि बिहार सरकार आैर पुलिस भी उसके आदेशों का पालन नहीं कर रहीं तो उसने राज्य के सभी शैल्टर होमों से जुड़े सभी 17 मामलों की जांच सीबीआई से कराने के आदेश दे दिये। सुप्रीम कोर्ट का आदेश सुशासन बाबू की सरकार के मुंह पर करारा तमाचा है।
जब सत्ता निष्ठुर हो जाए आैर पुलिस नाकाम हो जाए तो फिर सुप्रीम कोर्ट को तो हस्तक्षेप करना ही था। न्यायपालिका तभी हस्तक्षेप करती है जब उसे लगता है कि प्रशासन पंगु हो चुका है। यौन शोषण कांड बेहद डरावना और भयावह है। पता नहीं बिहार के राजनीतिज्ञों का दिल क्यों नहीं पसीजा? लगातार सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद भी बिहार सरकार ने उदासीन रवैया अपनाया। बिहार में इन दिनों कानून-व्यवस्था की स्थिति अत्यन्त खतरनाक है। बेकसूरों को जिन्दा जलाया जा रहा है, महिलाएं घरों से बाहर निकलने से डरती हैं, आये दिन हत्याएं हो रही हैं। यह संकेत है कि बिहार में जंगलराज की वापसी हो चुकी है। सरकारें सही ढंग से काम करें तो न्यायपालिका को हस्तक्षेप की जरूरत ही न पड़े। नीतीश बाबू को अपनी धूमिल होती छवि को बचाने के लिए ठोस कदम उठाने ही होंगे।
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