नई दिल्ली : सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को पूर्व दूरसंचार मंत्री दयानिधि मारन की मद्रास उच्च न्यायालय के एक आदेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। मद्रास उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में उन पर अवैध टेलीफोन एक्सचेंज मामले में मुकदमा चलाए जाने का निर्देश दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने निचली अदालत को मारन के खिलाफ आरोप तय करने का निर्देश देते हुए कहा है कि उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत है। जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट बेंच ने दयानिधि मारन की याचिका पर सुनवाई करते हुए इस याचिका को खारिज कर दिया। देश की शीर्ष अदालत ने आदेश दिया कि वह मामले में ट्रायल का सामना करें। ट्रायल कोर्ट द्वारा ही ऐसे मामलों का फैसला किया जाए।
हाईकोर्ट के आदेश एक साल में पूरी हो सुनवाई
इससे पहले मद्रास हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते अवैध टेलीफोन एक्सचेंज मामले में दयानिधि मारन और अन्य लोगों को सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा बरी किए जाने के फैसले को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उनके खिलाफ सबूतों का अंबार है। दरअसल, दयानिधि मारन पर अपने भाई कलानिधि मारन के सन टीवी नेटवर्क को लाभ पहुंचाने के लिए अवैध टेलीफोन एक्सचेंज स्थापित करने का आरोप है।
मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस जी जयचंद्रन ने इन सभी को आरोपमुक्त करने के फैसले के खिलाफ सीबीआई की अपील को मंजूर करते हुए विशेष अदालत को आरोप तय करने का निर्देश देते हुए कहा है कि हाईकोर्ट के आदेश की नकल मिलने के एक साल के भीतर मुकदमे की सुनवाई पूरी की जाए।
सभी आरोपियों के खिलाफ आरोप तय करने के लिए पर्याप्त सबूत : कोर्ट
कोर्ट का कहना था कि सभी आरोपियों के खिलाफ आरोप तय करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं। वहीं निचली अदालत ने जिन वजहों से उन्हें बरी किया था उनमें कोई भी कानून के लिहाज से सही नहीं है। इस मामले में सीबीआई अदालत की ओर से मानदंडों का घोर उल्लंघन किया गया। लिहाजा उन्हें बरी करने का फैसला अतार्किक और अवैध था इसलिए इसे दुरूस्त किया जाना जरूरी है।
दयानिधि के वकील ने दलील थी कि उन्होंने अपने कार्यकाल में ब्रॉडबैंड को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जिस पर हाईकोर्ट ने कहा कि इसका यह मतलब नहीं है कि दयानिधि के भाई और उनके व्यापारिक प्रतिष्ठान को उस सुविधा के निशुल्क लाभ उठाने की छूट है। इससे पहले निचली अदालत ने 14 मार्च को मारन बंधुओं और अन्य को आरोप मुक्त करते हुए कहा था कि उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं होने के कारण प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता। यह पूरा घोटाला यूपीए सरकार के कार्यकाल का है जब डीएमके प्रमुख एम करुणानिधि के रिश्तेदार दयानिधि सरकार में संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री थे।
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