Thursday, May 31, 2018

बिहार : महाबोधि मंदिर सिलसिलेवार बम विस्फोट मामले में सजा पर बहस जारी

बौद्ध धर्मावलंबियों के पवित्र धर्मस्थल बिहार में बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर में हुए सिलसिलेवार बम विस्फोट मामले में दोषियों के खिलाफ सजा के बिंदु पर आज राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की विशेष अदालत में बहस जारी रही, कल भी होगी बहस। एनआईए के विशेष न्यायाधीश मनोज कुमार सिन्हा की अदालत में एनआईए की ओर से विशेष लोक अभियोजक ललन प्रसाद सिन्हा ने दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा देने की प्रार्थना की और अपनी बहस में कहा कि इस घटना को एक अंतर्राष्ट्रीय स्थल पर सुनियोजित ढंग से अंजाम देने की योजना बनाई गई थी ताकि अधिक से अधिक लोगों को क्षति पहुंचाई जा सके।

उन्होंने कहा कि बम का प्रार्थना स्थल, बच्चों के खेलने के मैदान, एंबुलेंस, बस, बिजली के ट्रांसफॉर्मर और भगवान की मूर्ति स्थलों पर लगाया जाना इस बात को इंगित करता है कि दोषियों का उद्देश्य व्यापक पैमाने पर नुकसान पहुंचाना, समाज में विद्वेष फैलाना एवं आतंक पैदा करना था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के हजारा सिंह मामले में दिए गए निर्णय को उल्लेखित करते हुए दोषियों को अधिकतम सजा दिए जाने की मांग की। बचाव पक्ष की ओर से वकील सूर्यप्रकाश सिंह ने बहस करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट का हजारा सिंह मामले में दिया गया फैसला इस मामले में लागू नहीं होता है।

उन्होंने कहा कि कोर्ट में यह साबित हुआ है कि बम कमजोर प्रकृति के थे तथा उसके टाइमर में विस्फोट का जो समय अंकित था वह भी ऐसा नहीं था कि उससे अधिक से अधिक लोगों को क्षति पहुंचाई जा सके। इसके अलावा उन्होंने आर। कृष्णन मामले में सुप्रीम कोर्ट के ही फैसले का हवाला देते हुए कहा कि सजा देते समय किन परिस्थितियों को ध्यान में रखना है, उनका विवरण उक्त निर्णय में दिया गया है। उन्होंने आगे बहस के लिए समय की मांग की। विशेष अदालत ने उनकी प्रार्थना स्वीकार करते हुए बहस के लिए 01 जून की तिथि निश्चित की है।

मामला 05 जुलाई 2013 को बिहार में गया जिले के बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर में किए सिलसिलेवार बम धमाकों का है। इस विस्फोट में कई लोग घायल हो गये थे जबकि कई बमों को बरामद कर निष्क्रिया किया गया था। इस मामले में विशेष अदालत ने आरोपित हैदर अली, अजहरुद्दीन कुरैशी, उमर सिद्दीकी, इम्तियाज अंसारी और मुजिबुल्लाह को 25 मई को भारतीय दंड विधान, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम और विधि विरुद्ध क्रियाकलाप (निरोधक) अधिनियम की विभिन्न धाराओं में दोषी करार दिया था। इसी मामले के एक अन्य नाबालिग आरोपित को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने पूर्व में ही दोषी करार दिया था और उसे कारावासित रहने की सजा सुनाई थी।

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