Wednesday, November 27, 2019

महा-सरकार की परीक्षा लेंगी ये 10 चुनौतियां

क्या महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की महागठबंधन वाली सरकार आने वाले चुनौतियों से उसी तरह निबटने में सफल होगी, जैसा पिछले कुछ दिनों के दौरान साथ रहकर दिखाया? नई सरकार के सामने क्या हैं चुनौतियां और अपेक्षाएं? गुरुवार को जब इन तीनों दलों की महाअघाडी सरकार शपथ लेकर राज्य की राजनीति में गेम चेंजर प्रयोग की शुरुआत करेगी तो यही सवाल सामने होंगे। इस सरकार के सामने 10 चुनौतियां कुछ इस तरह की होंगी: घर बचाने की चिंता एक बार सरकार बनाने के बाद इसे बचाने के लिए तीनों दलों को अपना घर एकजुट रखना होगा। कर्नाटक में कुमारस्वामी और कांग्रेस ने सरकार तो बना ली, लेकिन पार्टी को सहेज नहीं पाए और उसका हश्र सबके सामने है। कर्नाटक के अलावा भी कई राज्यों में टूट-फूट हो चुकी है। सरकार चलाने के साथ ही तीनों दलों को अपने असंतुष्ट गुट को मनाकर रखना होगा। आपस का समन्वय आपसी समन्वय एक बड़ी चुनौती रहेगी। हालांकि तीनों दलों का दावा है कि बहुत मंथन के साथ कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बना लिया गया है, लेकिन इसे अमल में लाना इतना आसान नहीं हाेगा। कैसे लड़ेंगे साथ चुनाव चुनाव में अगर गठबंधन के रूप में जाते हैं तो किस तरह साथ लड़ेंगे, यह बहुत ही पेचीदा मामला होगा। तीनों दलों को अपने राजनीतिक स्पेस का त्याग करना होगा। यह किसी के लिए आसान नहीं होगा। सरकार में कौन लेगा फैसला सरकार गठन की प्रक्रिया में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस, तीनों दलों के नेताओं ने समान भूमिका निभाई दी। अब चुनौती होगी कि सरकार के अंदर अहम फैसला कौन लेगा। हालांकि गठबंधन के नेताओं का कहना है कि उन्होंने हर चीज पहले से साफ कर ली है। राष्ट्रीय स्तर पर कैसे बढ़ेंगे महाराष्ट्र में साथ आने के बाद तीनों घटक इस दोस्ती को राष्ट्रीय राजनीति में किस तरह आगे ले जाएंगे, यह सबसे बड़ा सवाल है। संजय राउत ने संकेत दिया है कि इस गठबंधन का राष्ट्रीय राजनीति पर असर पड़ेगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि शिवसेना के खेमा बदलने के बाद सियासत किस तरह करवट लेती है। पिछले कुछ वर्षों से उद्धव की पार्टी ने दूसरे राज्यों में भी चुनाव लड़ना शुरू किया है और उनकी राष्ट्रीय राजनीति में एंट्री की मंशा भी सामने आते रही है। क्या यूपीए उन्हें यह जगह देगी। अहं का टकराव टालना इस गठबंधन में कई दिग्गज नेताओं के अलावा तीन-तीन पूर्व सीएम हैं। कांग्रेस से पृथ्वीराज चौहान और अशोक चह्वान तो एनसीपी से शरद पवार। इन तीनों की राज्य में पकड़ रही है। गवर्नेंस में इन नेताओं के अहं को नियंत्रण में रखना भी गठबंधन के लिए आसान नहीं होगा। बड़े वादे को पूरा करना महाआघाडी ने जो बड़े-बड़े वादे किए हैं, उनको पूरा करना इस मिली-जुली सरकार के लिए आसान नहीं होगा। गवर्नेंस के स्तर पर सरकार का कामकाज गठबंधन का भविष्य बहुत हद तक तय करेगा। केंद्र सरकार से संबंध बीजेपी सरकार के लिए मजबूत विपक्ष रहेगी। केंद्र सरकार से रिश्ता बनाए रखने की भी चुनौती है। पिछले पांच वर्षों के दौरान दोनों जगह एक ही पार्टी की सरकार रहने का लाभ मिल चुका है। पहले सात दिन का टेस्ट तीनों दलों को अपने विधायकों के अलावा निर्दलियों का भी समर्थन हासिल करना है। इस मोर्चे पर जैसी कामयाबी मिलेगी, उसी के अनुसार आगे की राह तैयार होगी। नरम और गरम हिंदुत्व के बीच साधना होगा संतुलन कांग्रेस-एनसीपी सेकुलर राजनीति का प्रतिनिधित्व करती रही हैं, तो शिवसेना की पहचान आक्रामक हिंदुत्व है। तीनों दल बार-बार दावा कर रहे हैं कि वे इन चीजों को दरिकनार कर बड़े मुद्दों को साथ लेकर चलेंगे। वैसे राजनीति में यह इतना आसान नहीं। 24 नवंबर को ही उद्धव ठाकरे का अयोध्या जाकर राम मंदिर निर्माण के लिए उद्घोष करने का कार्यक्रम था। सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस-एनसीपी नेताओं के आग्रह पर यह दौरा टाल दिया गया। आगे ऐसी स्थिति दोनों खेमों से पैदा हो सकती है।


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