Friday, February 1, 2019

स्वामी श्रद्धानंद के लिए मांगा भारत रत्न

हरिद्वार : गुरुकुल कांगड़ी विद्यालय में अमर हुतात्मा स्वामी श्रद्धानंद के लिए भारत रत्न की मांग उठाई गई। विद्यालय में शिक्षकों की एक बैठक आहूत की गयी। बैठक की अध्यक्षता करते हुए विद्यालय के मुख्य अधिष्ठाता व् शिक्षाविद डा. दीनानाथ शर्मा ने कहा कि स्वामी श्रद्घानंद महाराज ने 1902 में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय की स्थापना कांगड़ी गांव में की थी। स्वामी की पहली प्रयोगशाला गुरुकुल कांगड़ी है जहां पर वैदिक संस्कारों से मानव को मानव बनाया जाता है।

उस कालांतर में न सुविधाएं, सड़क और शिक्षा देने की व्यवस्था थी, जिधर भी आंख पसार देखते थे। उधर अंग्रेजो की सल्तनत चलती थी, उस समय स्वामी श्रद्धानंद महाराज ने अंगेजों से लोहा लिया था। उन्होंने देश की आजादी में अपना घर बहार त्याग कर अपना बलिदान दिया है। आर्य समाज के पुरोधा स्वामी श्रद्धानंद को भारत रत्न मिलना चाहिये। स्वामी श्रद्धानंद महाराज को भारत रत्न जैसा पुरस्कार अवश्य मिलना चाहिए।

इस अवसर पर बैठक में अशोक कुमार, डा हुकुम सिंह, डा. ब्रजेश कुमार, वेद पाल सिंह, विजय कुमार, अमित कुमार, राज कमल सैनी, दीप कमल लोकेश, जीतेन्द्र कुमार वर्मा, अश्वनी कुमार, टीकम सिंह, सज्जन कुमार, अशोक कुमार गौरव कुमार आदि शिक्षक उपसिथत थे। बैठक का संचालन डा. योगेश शास्त्री ने किया। वहीं हिंदू रक्षा सेना के मंडल संयोजक मयंक चौहान ने भी कुलपति के माध्यम से राष्ट्रपति को ज्ञापन प्रेषित किया।

आर्य समाज के साधकों ने आजादी दिलाने में खून बहाया
गुरुकुल कांगड़ी विद्यालय के प्रधानाचार्य डा. विजेंद्र शास्त्री ने कहा कि देश की आजादी में स्वामी श्रद्धानंद महाराज अहम् भूमिका रही है। देश की आजादी में आर्य समाज द्वारा चलाया गया स्वतंत्रता आन्दोलन किसी से छिपा नहीं है। इतिहास के पन्नों को पलटकर देखों आजादी दिलाने में खून की नदियां आर्य समाज के साधको द्वारा बहाई गयी है। आर्य समाज के प्रमुख प्रचारक स्वामी श्रद्धानंद महाराज है इसलिए श्रद्धानंद महाराज को भारत रत्न मिलना चाहिए।

बैठक में गुरुकुल कांगड़ी विद्यालय के शिक्षक डा. योगेश शास्त्री ने कहा कि स्वामी श्रद्धानंद महाराज को बहुत पहले ही भारत रत्न मिल जाना चाहिए। देश के नाम सर्वस्व न्यौछावर करने वाला आर्य समाज के पहले संत है, जिन्होंने समाज के उत्थान, शिक्षा तथा हिंदुत्व की रक्षा के लिए लाल किले पर अपनी जान की आहुति दे दी थी।

– संजय चौहान



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