मुंबई : शिवसेना ने शुक्रवार को पूछा कि मुख्यमंत्री द्वारा नियुक्त लोकायुक्त अपने बॉस की जांच कैसे करेगा? महाराष्ट्र मंत्रिमंडल ने मुख्यमंत्री कार्यालय को भ्रष्टाचार रोधी लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में लाने का फैसला किया है जिसकी पृष्ठभूमि में पार्टी ने यह टिप्पणी की।
सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने फैसले का स्वागत किया। हजारे ने केंद्र में लोकपाल नियुक्त करने और राज्यों में लोकायुक्त कानून पारित करने की मांग को लेकर बुधवार से भूख हड़ताल शुरू की थी।
सत्तारूढ़ भाजपा के सहयोगी दल शिवसेना ने अपने संपादकीय ‘‘सामना’’ में दावा किया कि अभी ऐसा लोकपाल नहीं आया है जो भ्रष्टाचार खत्म कर सके। सामना में कहा गया है, ‘‘अब मुख्यमंत्री भी लोकायुक्त की जांच के दायरे में है। लेकिन सवाल यह है कि मुख्यमंत्री द्वारा नियुक्त लोकायुक्त अपने बॉस की जांच कैसे करेगा?’’ पार्टी के मुखपत्र ने कहा कि चुनाव लड़ने और जीतने में ‘‘काफी धनराशि’’ खर्च होती है। संपादकीय में बिना किसी का नाम लिए बगैर कहा गया है कि चुनावों के दौरान प्रतिनिधियों की खरीद-फरोख्त होती है और मुख्यमंत्री पद रखने वाले व्यक्ति को चुनाव लड़ने के लिए रुपये एकत्रित करने होते हैं।
शिवसेना ने कहा, ‘‘पसीना बहाकर नहीं बल्कि मेज के नीचे से रुपये कमाए जाते हैं।’’ ऐसा आरोप है कि लोकायुक्त और भ्रष्टाचार रोधी ब्यूरो तब भी कार्रवाई नहीं करते जब विपक्षी पार्टी जन भाषणों के जरिए भ्रष्टाचार के सबूत देती हैं। किसी का नाम लिए बगैर शिवसेना ने दावा किया कि नगर निकाय चुनावों के लिए पार्टी का बजट करीब 400 करोड़ रुपये था। उसने कहा कि यह पैसा ज्ञात स्रोतों से नहीं आता।
शिवसेना ने पूछा, ‘‘किसानों को उनके उत्पाद के लिए सही समर्थन मूल्य नहीं मिलता लेकिन ये ‘धर्मात्मा’ कौन हैं जो शासकों को हजारों करोड़ रुपये देते हैं। वे केवल शासकों को धन क्यों देते हैं?’’ पार्टी ने यह भी पूछा कि क्या अन्ना के आंदोलन से इन सवालों का जवाब मिलेगा।
संपादकीय में दावा किया गया है कि भ्रष्टाचार का मूल चुनाव प्रक्रिया में निहित है। उसने आरोप लगाया कि निर्वाचन आयोग हमेशा सत्तारूढ़ दलों के हाथों में ‘‘कठपुतली’’ की तरह काम करता है। भाजपा पर निशाना साधते हुए शिवसेना ने कहा कि जैसे राफेल सौदे में भ्रष्टाचार हुआ ही नहीं है वैसे ही मुख्यमंत्री भी ‘शुचिता के शिरोमणि’ ही होते हैं।
from Punjab Kesari (पंजाब केसरी) http://bit.ly/2BdTKxX
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