मुंबई महाराष्ट्र की राजधानी के मामलों में जरूर कमी आ रही है, लेकिन समय पर अस्पताल नहीं पहुंचने और रोग को समझने में देरी के कारण इससे मरने वाले मरीजों की संख्या बढ़ रही है। कोरोना से हुई मौत के विश्लेषण के लिए बनी कोरोना मृत्यु विश्लेषण समिति की रिपोर्ट में चौंकाने वाली बात सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार, 31 प्रतिशत मौतें अस्पताल में भर्ती होने के महज 24 घंटे के भीतर हुई हैं, जबकि 59 प्रतिशत मरीजों की मौत अस्पताल में भर्ती होने के 4 दिन के भीतर हुई है। कोरोना से हो रही मृत्यु को कम करने के लिए राज्य सरकार ने कोरोना मृत्यु विश्लेषण समिति बनाई थी। कमिटी ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है। इसमें बीमारी की तत्काल पहचान और इलाज पर जोर देने की सलाह दी गई है। मुंबई में 7 हजार मौतें मुंबई में कोरोना से ग्रसित होने वालों की संख्या 1 लाख 43 हजार के पार चली गई है। वहीं, रोग के कारण 7 हजार 593 लोगों की मौत भी हो चुकी है। 1 लाख 15 हजार लोग इस बीमारी से ठीक भी हो चुके हैं। समिति ने 5 हजार 200 मौतों का विश्लेषण किया है, जिसमें से 31 प्रतिशत मरीजों की मृत्यु अस्पताल में भर्ती होने के 24 घंटे के भीतर हुई है और 59 प्रतिशत की 4 दिन के भीतर। रोग की देरी से पहचान समिति के प्रमुख डॉ. अविनाश सुपे के अनुसार, रोग की देरी से पहचान और मरीज के अस्पताल देरी से पहुंचने के कारण मौत के मामलों में वृद्धि हुई थी, लेकिन अब स्थिति ठीक हो रही है। कोरोना को नियंत्रित करने के लिए प्रशासन और लोगों को साथ मिलकर काम करना होगा। मौत की दर को कम करने के लिए कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग पर जोर देना होगा। यह भी देखेंः रोग के प्रसार को रोकने के लिए कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग कर लोगों को आइसोलेशन में रखना बेहद जरूरी है। इसके लिए आरोग्य सेविका और अन्य विभागों के लोगों को शामिल करना चाहिए। योग्य उपचार के लिए स्वास्थ्यकर्मियों की ट्रेनिंग का भी खयाल करना होगा। कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग और समय पर उपचार करना बेहद जरूरी है। ग्रामीण क्षेत्रों नहीं सही व्यवस्था संक्रमण रोग विशेषज्ञ डॉ. ईश्वर गिलाडा के अनुसार, ठाणे, रायगड और पालघर में सुविधा के अभाव की वजह से बड़ी संख्या में मरीज मुंबई आते हैं, इसलिए मुंबई की कोरोना मृत्यु दर में इजाफा हो रहा है। शहर से गांव तक बीमारी पहुंच गई है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में शहरों की तरह चिकित्सा सुविधा की व्यवस्था नहीं हुई है। मुंबई के अस्पतालों में बेड अब खाली होने लगे हैं। अब हमें ग्रामीण इलाकों की चिकित्सा पर ध्यान देना चाहिए। 'टेस्ट के लिए आगे नहीं आ रहे लोग' डॉ. हेमल शाह के अनुसार, कोरोना के डर से लोग टेस्ट करवाने के लिए आगे नहीं आते हैं। देरी से उपचार मिलने से उनकी मौत हो जाती है। वहीं, कुछ लोग अब कोरोना टेस्ट से बचने के लिए एचआरसीटी ऑफ टेस्ट करवा के दवा ले रहे हैं। इसका खमियाजा भुगतना पड़ रहा है। तबीयत अधिक बिगड़ने पर लोग अस्पताल पहुंचते हैं, तब उन्हें बचाना बहुत मुश्किल होता है।
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