लखनऊ पिता दिल्ली के अस्पताल में भर्ती थे। दवाओं का खर्च इतना था कि रैन बसेरे में रात गुजारनी पड़ती थी। कई-कई रात भूखे सोना पड़ा, ताकि इलाज के लिए रुपये कम न पड़ जाएं। इस दौरान इलाज के खर्च से टूट चुके तीमारदारों को मासूम बच्चों के साथ खाली पेट सोते देखा। भूख से रोते हुए बच्चों और मांओं की बेबस आंखें देखी नहीं जाती थीं। यह सब देख खुद से वादा किया कि पिताजी को अस्पताल से घर ले जाने के बाद बेबस तीमारदारों के लिए कुछ करूंगा। हालांकि पिताजी का अस्पताल में ही निधन हो गया। लेकिन खुद से किया वादा याद रहा। लखनऊ लौटने के बाद अस्पतालों में भर्ती मरीजों की देखभाल करने वाले जरूरतमंदों को नि:शुल्क चाय-बन देने से शुरू हुआ सफर आज केजीएमयू, लोहिया और बलरामपुर समेत कई अस्पतालों में तीमारदारों को दो वक्त भोजन मुहैया करवाने तक पहुंच चुका है। राजधानी के सुशांत गोल्फ सिटी निवासी 39 वर्षीय आज अस्पतालों में भर्ती मरीजों के तीमारदारों के लिए फूडमैन बन चुके हैं। 2003 में पिता विजय बहादुर सिंह के देहांत के बाद जरूरतमंदों की मदद के लिए उनकी याद में विजय श्री फाउंडेशन बनाया। अपनों ने कटाक्ष किया, पर डटे रहे जमा पूंजी और दोस्तों के सहयोग से अस्पतालों में भर्ती मरीजों और तीमारदारों के लिए घर से खाना बनाकर ले जाते थे। करीब चार साल तक सेवा करने के बाद आर्थिक स्थित खराब होने लगी। धीरे-धीरे रिश्तेदारों और परिचितों ने कटाक्ष करने शुरू कर दिए। एक समय ऐसा भी आया जब खुद के लिए कुछ नहीं बचा। पिता की याद में लिया गया संकल्प टूटने की आशंका और लोगों के ताने सुनकर विशाल अवसाद में आ गए। ...पर हौसला नहीं टूटा इसके बाद एक साल तक केजीएमयू के मानसिक रोक विभाग में इलाज चला। हालत में सुधार होने पर एक बार फिर लोगों की सेवा में जुट गए। हालांकि इस बार दोस्तों और अन्य लोगों से भी मदद का फैसला लिया। जन्मदिन, शादी की सालगिरह जैसे मौके पर जरूरतमंदों की मदद कर कुछ अलग अंदाज में जश्न मनाने की अपील करते हुए लोगों को जोड़ना शुरू किया। पहल रंग लाई और तमाम लोग आगे आने लगे। इसी का नतीजा है कि वर्ष 2015 में केजीएमयू से शुरू हुआ सेवा का सफर आज लोहिया इंस्टिट्यूट और बलरामपुर अस्पताल में रोज करीब 900 जरूरतमंदों को भोजन मुहैया करवाने तक पहुंच गया है।
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