यह पुस्तक लेखक के जीवन वृत्तांत और विचारधारात्मक परिवर्तनों के माध्यम से उन विरोधाभासों से साक्षात्कार कर सकती है जिनकी वजह से भारत अपनी संभावनाओं को अब तक प्राप्त नहीं कर पाया था। पुस्तक की भाषा सरल और शैली प्रवाहमयी है लेकिन पुस्तक में एक गलती रह गई है।
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