पहली नजर में यह लग सकता है कि सोनू सूद ने अपनी प्रशंसा के पुल बांधने के लिए इसकी रचना की है। लिहाजा उन्होंने पुस्तक की भूमिका में ही स्पष्ट कर दिया है कि यह आत्मश्लाघा की कहानी नहीं है।
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