सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि मृत्युपूर्व दिए गए बयान को स्वीकार या खारिज करने के लिए कोई सख्त पैमाना या मानदंड नहीं हो सकता। मृत्युपूर्व दिया गया बयान यदि विश्वास करने योग्य हो तो किसी अन्य साक्ष्य के बगैर भी दोषसिद्धि संभव है।
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