‘सतपुड़ा के घने जंगल..’ की रचना राष्ट्रकवि भवानी प्रसाद मिश्र ने इसी सोनाघाटी पर की थी। पांच साल से विद्या भारती सहित कई संगठन फिर इस जंगल को हरा-भरा करने में जुटे हैं। रोपे गए चार हजार पौधे अब वृक्ष बन रहे हैं।
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