लखनऊ बुजुर्ग आनंद प्रकाश के फोन की घंटी बजी। लाटूश रोड वाली दुकान से फोन आया था। दूसरी तरफ से आवाज आई, 'मैं प्रोफेसर रामचरन हूं। अमेरिका में रहता हूं। 60 साल बाद लखनऊ आया हूं। आपका शुक्रिया अदा करना था। आपको शायद याद हो। आपने 60 साल पहले हापुड़ के एक लड़के का पासपोर्ट बनवाया था। उसने मेरी जिंदगी बदल दी। अगर पासपोर्ट नहीं बनता तो आज मैं न जाने कहां होता।' उनकी बात सुनने के बाद आनंद प्रकाश ने जवाब दिया, 'बिजनेसमैन के पास से चाहे सारा धन चला जाए, पर एक चीज नहीं जाती, वह है याददाश्त। मुझे सब याद है। हां, ताज्जुब है कि उस छोटे से काम के लिए साठ साल बाद आप शुक्रिया अदा करने लखनऊ आए।' रामचरन लखनऊ के जयपुरिया इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में 'डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन स्ट्रैटजीज़' पर अपने विचार व्यक्त करने आए थे। गुरुवार शाम होटल के कमरे में जाते ही उन्होंने लाटूश रोड जाने की इच्छा जाहिर की। उन्हें पिता से मिली वह पुर्जी याद थी, जो लाटूश रोड के श्रीराम ट्रेडर्स के मालिक श्रीराम को लिखी गई थी। उनके पिता की हापुड़ में जूतों की दुकान थी। प्रफेसर रामचरन को पढ़ने विदेश जाना था। तब पासपोर्ट बनवाना आसान नहीं था। लिहाजा पिता की चिट्ठी के भरोसे वह लखनऊ आए थे। श्रीराम ट्रेडर्स के मालिक के घर पहुंचे गुरुवार होने की वजह से लाटूश रोड की ज्यादातर दुकानें बंद थीं पर श्रीराम ट्रेडर्स के तीन-चार प्रतिष्ठानों में से एक दुकान खुली मिली। वहां प्रफेसर को पता चला कि श्रीराम ट्रेडर्स के मालिक श्रीराम जी नहीं रहे, उनके बेटे आनंद प्रकाश भी 87 साल के बुजुर्ग हैं। वह भी अब कभी-कभी ही दुकान आते हैं और अब निरालानगर में रहते हैं। पहले वह मॉडल हाउस में रहते थे। खैर, प्रफेसर रामचरन उन्हें तलाशकर उनके मॉडल हाउस वाले घर गए तो वहां से फोन पर बात हुई। 'व्यावहारिकता हापुड में सीखी हार्वर्ड से नहीं' प्रफेसर रामचरन ने एनबीटी से कहा, 'मुझे दिली तसल्ली है कि मैंने उस शख्स का शुक्रिया अदा कर दिया कि जिसके बनवाए पासपोर्ट ने मेरी जिंदगी बदल दी। यह गुण मैंने हॉवर्ड की अपनी पढ़ाई से नहीं बल्कि हापुड़ में रहते हुए दस साल की उम्र में ही सीख लिया था। बचपन की व्यवहार गणित ने मुझे तमाम ऐसी बातें सिखाई थीं जो हार्वर्ड में महंगी फीस और लंबे तामझाम के साथ सिखाई जाती हैं।
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