रामदास अग्रवाल बताते हैं- मैं जब छोटा था तब मां लताजी के गीत गुनगुनाती थीं। सुबह से रात तक जब भी मां को समय मिलता वे पुराने गीत ही गाती थीं। लताजी के गानों में ऐसी कशिश है कि जब तक उनके गीत नहीं सुन लेता मुझे नींद नहीं आती।
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