लखनऊप्रवर्तन निदेशालय () की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ में हुई हिंसा के पीछे देशविरोधी ताकतों का हाथ था। जांच में पता चला है कि हिंसा वाले इलाकों से केरल के संगठन पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया () का आर्थिक लेनदेन हुआ था। ईडी के सूत्रों के मुताबिक, संसद से सीएए कानून पास होने के बाद पश्चिमी यूपी के 73 बैंक खातों में 120 करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम जमा की गई थी। पीएफआई और इससे जुड़े संगठन रेहाब फाउंडेशन ऑफ इंडिया (आरएफआई) व कुछ अन्य लोगों के नाम से खोले गए खातों में यह रकम विदेशी स्रोतों और कुछ निवेश कंपनियों के मार्फत भेजी गई। जांच एजेंसी को शक है कि इसी रकम का इस्तेमाल यूपी में हिंसक प्रदर्शनों के लिए हुआ था। इन हिंसक वारदातों में 20 जानें गई थीं। ईडी ने यह रिपोर्ट केंद्रीय गृह मंत्रालय को भी भेजी है। यूपी सरकार हिंसा के पीछे पीएफआई का हाथ बताते हुए इस पर बैन की मांग लगातार कर रही है। ईडी मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में पीएफआई की 2018 से जांच कर रहा था। इस दौरान उसने 17 अलग-अलग बैंकों में पीएफआई के 27 खातों, आरएफआई के 9 खातों और 37 अन्य लोगों के अकाउंट पर नजर रखी तो पाया कि इन खातों में कैश, एनईएफटी, आरटीजीएस, आईएमपीएस के जरिए रकम डाली गई। जमा होते ही निकाल ली गई रकम खास बात यह कि रकम उसी दिन या दो दिन के अंदर निकाल ली गई। सिर्फ नाम का पैसा छोड़ा गया। ज्यादातर फंड का लेनदेन नागरिकता कानून के खिलाफ धरना-प्रदर्शन वाले दिनों के आसपास ही हुआ। इससे शक गहराता है कि हिंसक प्रदर्शनों के लिए ही पैसा जुटाया गया और खर्च किया गया। ईडी का आरोप है कि इन अकाउंट से कुछ रकम वकीलों को भी भेजी गई। हालांकि, इन वकीलों ने खंडन किया है। कौन है पीएफआई? पीएफआई खुद को एक गैर सरकारी संगठन बताता है। इस संगठन पर कई गैर-कानून गतिविधियों में पहले भी शामिल रहने का आरोप है। गृह मंत्रालय ने 2017 में कहा था कि इस संगठन के लोगों के संबंध जिहादी आतंकियों से हैं, साथ ही इस पर इस्लामिक कट्टरवाद को बढ़ावा देने का आरोप है। पीएफआई ने खुद पर लगे इन सभी आरोपों को बेबुनियाद बताया था, लेकिन अकसर इस संगठन को लेकर विवाद होता रहा है। पीएफआई ने अपनी वेबसाइट पर खुद को गरीबों, पिछड़ों के लिए काम करने वाला संगठन और फासीवाद के खिलाफ बताया है।
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