अंबरीश मिश्रा, मुंबई असम को पूर्वोत्तर और देश से अलग करने का बयान देने वाले जेएनयू छात्र शरजील इमाम की गिरफ्तारी हो चुकी है। इस बीच महाराष्ट्र में सत्ताधारी शिवसेना ने अपने संपादकीय में शरजील पर जो रुख दिखाया है, उससे वहां की महाविकास अघाडी सरकार में तकरार हो सकती है। एनसीपी और कांग्रेस के समर्थन से राज्य में शिवसेना गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रही है। शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में भड़काऊ और देशविरोधी बयाने देने वाले शरजील पर मोदी सरकार के ऐक्शन का समर्थन किया है। सामना के संपादकीय में लिखा गया है, 'नागरिकता कानून के विरोध में देशभर में प्रदर्शन और आंदोलन शुरू है। लेकिन इस पूरे आंदोलन के दौरान किसी ने भी देश विरोधी वक्तव्य नहीं दिया था। इन सब आंदोलनों पर टांग ऊपर करने का काम शरजील इमाम ने दिया। शरजील के भाषण सिर्फ भड़काऊ ही नहीं, बल्कि देश विरोधी भी थे। चिकन नेक मुस्लिमों का ही है। ऐसा बयान देकर शरजील ने देश के मुस्लिम समाज का सिर कलम कर दिया है। चिकन नेक अर्थात मुर्गी की गर्दन। पूर्वोत्तर के राज्यों को देश से जोड़नेवाले 22 किलोमीटर के हाइवे को चिकन नेक कहा जाता है। इस चिकन नेक की गर्दन काटने के सपने देखनेवाले शरजील का हाथ उखाड़कर चिकन नेक हाइवे पर टांगना चाहिए।' शिवसेना ने केंद्र सरकार का समर्थन करते हुए लिखा है, 'शाहीन बाग सहित देशभर में जो आंदोलन शुरू हैं, उसमें से हर किसी ने शरजील के बयान पर विरोध जताया और कहा कि इस देशद्रोही को गिरफ्तार करो। गृहमंत्री अमित शाह सभा से पूछते हैं, तुमने शरजील की विडियो देखी क्या? कन्हैया कुमार के शब्दों से भी वे अधिक घातक हैं। शरजील ने असम को हिंदुस्तान से तोड़ने की बात की है। हालांकि उसकी सात पीढ़ियों तक भी यह संभव नहीं है। हम केंद्रीय गृहमंत्री के इस जोरदार बयान से सहमत हैं। पिछले 5 वर्षों में देश तोड़ने की बात क्यों बढ़ रही है और ऐसा बोलनेवालों में पढ़े-लिखे नौजवानों की संख्या ज्यादा क्यों है? ये शोध का विषय है। शरजील जेएनयू से पीएचडी कर रहा है और आईआईटी मुंबई का पूर्व छात्र है। ऐसे युवकों के दिमाग में जहर कौन बो रहा है। इस पर प्रकाश डालना होगा।' शिवसेना के इस रुख की वजह से कांग्रेस के साथ उसका सीधा टकराव हो सकता है, क्योंकि कांग्रेस सीएए और एनआरसी के खिलाफ देशभर में चल रहे विरोध प्रदर्शन में काफी सक्रिय है। इसके साथ ही एनसीपी से भी शिवसेना की अनबन हो सकती है। भीमा-कोरेगांव के बाद एनसीपी ने सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों पर यलगार परिषद केस थोपने का आरोप लगाया है। सामना में लिखा है, 'महाराष्ट्र के यलगार मामले में गिरफ्तार सभी लोग समाज के नामी-गिरामी विद्वान और विचारक हैं और उन पर भी शरजील की तरह देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया है। मुसलमान और हिंदुओं में कलह बढ़े, इराक, अफगानिस्तान की तरह कभी समाप्त न होने वाली अराजकता और गृहयुद्ध चलता रहे, इस प्रकार के प्रयास शुरू हैं। उसे खाद-पानी देने का धंधा राजनीतिक प्रयोगशाला में चल रहा है। राष्ट्रीय एकात्मता नामक शब्द नष्ट करनेवाले प्रयोग यदि विद्रोह की चिंगारी पैदा कर रहे होंगे तो भविष्य आज ही समाप्त हो चुका है, ऐसा मानने में कोई गुरेज नहीं है। शहरी नक्सलवाद है ही। इसी के साथ उच्च वर्ग और उच्च शिक्षित लोगों में आतंकवाद बढ़ाने के लिए राजनीतिज्ञ जहर बो रहे होंगे तो और क्या होगा!'
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