शरीर का होना ही भगवान का शुक्रगुजार होने के लिए पर्याप्त है लेकिन हम खुशी के लिए कई काम करते हैं। हम दूसरों का शुक्रगुजार होने के भाव के साथ जीना शुरू करें और प्यार से सबके साथ रहें तो कृतज्ञता और निस्वार्थ सेवाभाव से जीवन खुशहाल हो जाता है।
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