कालिदास को न पहचानने में जितना दोष इस विद्यार्थी का है उससे कहीं अधिक लाखों रुपये का बजट डकारने वाली उन अकादमियों का भी है जिनका काम ही यह था कि वे नई पीढ़ी को भारत भारतीय संस्कृति साहित्य व स्वर्णिम इतिहास से अवगत करवाएं।
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