Sunday, February 2, 2020

जिसने बनाया DDA, वो खुद रहा हमेशा रेंट पर!

विवेक शुक्ला की स्थापना में एक उस इंसान की अहम भूमिका थी, जिसकी कभी अपनी छत नहीं हुई। उनका नाम सी.के. नायर था। वे गांधीवादी थे और 1952 और 1957 में बाहरी दिल्ली से लोक सभा के लिये चुने गए थे। वे दिल्ली में आवास से जुड़े मसलों के लिये सरकार से एक अलग विभाग शुरु करने का आग्रह बार-बार करते थे। तब 1957 में डीडीए बना। वे जीवन भर रेंट के घर में ही रहे। वे मलयाली थे। डीडीए की पहली कॉलोनी कौन जब आप दिल्ली मेट्रो से आईआईटी की तरफ जा रहे हैं तो ग्रीन पार्क स्टेशन पर उतर जाइए। यहां से दायीं तरफ बढ़ते ही आप पॉश सफदरजंग डिवेलपमेंट एरिया (एसडीए) में प्रवेश कर जाते हैं। एक से बढ़कर एक सुंदर कोठियां और उनके बाहर खड़ी महंगी कारें। चारों तरफ सुख-संपन्नता के दर्शन होने लगते हैं। अब चंद कदम आगे और बढ़िए तो आपको दिखाई देने लगते हैं चार मंजिला फ्लैट। यकीन मानिए ये सामान्य प्लैट नहीं हैं। इनका दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) से एक विशेष संबंध है। ये है डीडीए की पहली कॉलोनी। ये कॉलोनी जिधर आबाद हैं, उसका नाम है भीम नगरी। पहली डीडीए कॉलोनी में कितने फ्लैट थे की नींव 1969 के शुरूआती दिनों में रखी गई थी। ये बनकर तैयार हुई 1971 में। इसमें 74 फ्लैट हैं। मतलब 74 फ्लैट की कॉलोनी के निर्माण में डीडीए को दो साल लग गए। इसके फ्लैट एमआईजी है। खैर एक तरह से डीडीए ने तब ही संकेत दे दिए कि धीमी रफ्तार से चलना उसका स्थाई चरित्र रहने वाला है। काश तब डीडीए ने गयासुद्दीन तुगलक से कुछ प्रेरणा ले ली होती। उसका महरौली-बदरपुर रोड पर उजाड़ पड़ा तुगलकाबाद किला मात्र तीन साल में बनकर तैयार हो गया था। वह खंडहर होने पर भी अपने बुलंद अतीत की कहानी को बयां करता है। उसकी ऊंची-ऊंची दिवारों को देखकर कोई भी इंसान अपने को बौना महसूस करता है।


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