मुंबई महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने पार्टी के मुखपत्र सामना को दिए एक इंटरव्यू में कहा है कि मुख्यमंत्री बनना उनका सपना नहीं था। सामना के कार्यकारी संपादक और शिवसेना नेता संजय राउत को दिए इस साक्षात्कार में उद्धव ने बेबाकी से कई मुद्दों पर अपने विचार रखे। उद्धव ने इस दौरान कहा कि मैंने क्या मांगा था बीजेपी से? जो तय था वही न! मैंने उनसे चांद-तारे मांगे थे क्या? सीएम पद के कांटों का ताज होने के सवाल पर उद्धव ने कहा कि कंटीले पौधे में गुलाब भी खिलता है। शिवसेना सुप्रीमो ने हिंदुत्व के मुद्दे पर कहा कि हम हिंदुत्ववादी हैं और रहेंगे। एक नजर इस इंटरव्यू की खास बातों पर: संजय राउत- उद्धव जी, आप झटके से उबर गए हैं क्या? उद्धव ठाकरे- मैं शिवसेना प्रमुख का पुत्र हूं। झटका देने का प्रयास कइयों ने करके देखा है। लेकिन किसी को भी वो जमा नहीं। लेकिन शिवसेना प्रमुख ने जो झटका कइ लोगों को दिया है, उससे वे लोग अभी भी उबरते हुए नहीं दिखाई दे रहे। आपने शतरंज का जिक्र किया था, शतरंज दिमाग से खेला जानेवाला खेल निश्चित रूप से है लेकिन प्यादा, हाथी, घोड़ा, राजा, वजीर, ऊंट हर एक की चाल हम ध्यान में रखें तो शतरंज खेलना कठिन है, ऐसा मुझे नहीं लगता। संजय राउत- उद्धव जी, शतरंज एक प्रतिष्ठित खेल है। सही मायने में वहां बुद्धि का इस्तेमाल करना होता है। उद्धव ठाकरे- निश्चित ही। परंतु बुद्धि अगर हो तो न। संजय राउत- लेकिन महाराष्ट्र में इस शतरंज के खेल में षड्यंत्र और चालबाजी का स्वरूप आ गया है। आपने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली यही बड़ा झटका था, ऐसा नहीं लगता क्या? उद्धव ठाकरे- नहीं मुख्यमंत्री की कुर्सी को स्वीकार करना न तो मेरे लिए झटका था और न ही मेरा सपना था। अत्यंत ईमानदारी से मैं यह कबूल करता हूं। बालासाहेब को दिए वचन को निभाने के लिए किसी भी स्तर तक जाने की मेरी तैयारी थी। उससे भी आगे जाकर एक बात मैं साफ करता हूं कि मेरा मुख्यमंत्री पद वचन निभाने के लिए नहीं बल्कि वचन निभाने की दिशा में उठाया गया एक कदम है। उस ओर आगे बढ़ने के लिए मैंने मन से किसी भी स्तर तक जाने का तय किया था। अपने पिता को दिए गए वचन को पूरा करना ही है और मैं वह करूंगा ही। संजय राउत- परंतु इसे करने के लिए आपको तत्वों और ठाकरे परिवार की परंपरा को तोड़ना पड़ा, ऐसा नहीं लगता क्या? उद्धव ठाकरे- हां, सही है। आप जैसा कहते हैं वैसा है। निश्चित ही है। परंतु अंतत: ऐसा था कि...शिवसेना प्रमुख ने जिंदगी में कभी भी सत्ता का कोई भी पद नहीं स्वीकारा। मेरी भी ऐसी इच्छा नहीं थी, बिल्कुल भी नहीं। संजय राउत- ‘मातोश्री’ और शक्ति ये दो बातें हमेशा एक साथ रही हैं उद्धव ठाकरे- लेकिन जब मुझे आभास हुआ कि जिनके साथ हम हैं अथवा थे, उनके साथ रहकर मैं अपनी वचनपूर्ति की दिशा में जा नहीं सकता और उस वचनपूर्ति के लिए यदि मुझे अलग दिशा स्वीकारनी होगी तो वैसी तैयारी होनी चाहिए उसके लिए यदि मुझे ऐसी बड़ी जिम्मेदारी स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा तो मेरे लिए लाइलाज था। वह जिम्मेदारी स्वीकार करनी ही पड़ी। संजय राउत- हमेशा ऐसा कहते हैं कि मुख्यमंत्री का पद मतलब कांटों से भरी कुर्सी होती है या कांटों का ताज होता है। आपको इस कुर्सी पर बैठकर ऐसा लगा क्या? उद्धव ठाकरे- नहीं! मुझे ऐसा नहीं लगता। इसकी वजह यह है कि कंटीला ही होता है लेकिन उसी कंटीले पौधे में गुलाब भी खिलता है और गुलाब के गुलकंद से जिन्हें बदहजमी होती है, ऐसे लोगों का उपचार भी होता है। संजय राउत- 23 जनवरी शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे का जन्मदिन…इस बार आपको यह अलग लगा क्या? उद्धव ठाकरे- हां, निश्चित ही अलग लगा। बचपन से ही मैं यही सब माहौल देखते-देखते बड़ा हुआ हूं। उस दौर में शिवसेना प्रमुख से मिलने के लिए लोग बड़ी संख्या में आते थे। बाद में जब शिवसेना प्रमुख किसी से मिल नहीं सकते थे तब केवल उनके दर्शन के लिए ‘मातोश्री’ पर प्रचंड भीड़ भी मैंने देखी है। सुबह से ही शिवसैनिक आते थे। संजय राउत- इस बार की23 जनवरी को मैंने अलग इसलिए कहा कि आपके वचन निभाने के यह पहला जन्मदिन था। मातोश्री पर इस बार मुख्यमंत्री रह रहे थे। उद्धव ठाकरे- मातोश्री और शक्ति… मैं सत्ता नहीं कहता। शक्ति! ये दो बातें हमेशा ही एक साथ रही हैं, आगे भी रहेंगी। सत्ता प्राप्ति अथवा सत्ता में हमारा आना यह एक अलग तरह का अनुभव निश्चित रूप से है। मैंने जैसा कहा ‘मातोश्री’ और शक्ति के इकट्ठा होने की दो बातें हैं। इसलिए नया कुछ हुआ ऐसा मुझे नहीं लगता। क्योंकि वह भीड़, वह सब मैं बचपन से देखता रहा हूं। संजय राउत- हिंदुत्व के लिए आपने गठबंधन बचा लिया। विधानसभा चुनाव के प्रचार में हमने ऐसा देखा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आपका उल्लेख मेरे छोटे भाई कहकर करते थे… उद्धव ठाकरे- मेरे लिए उतना ही काफी था। संजय राउत- आप उनके छोटे भाई बन गए… उद्धव ठाकरे- अर्थात! उम्र में बड़े व्यक्ति का बड़ा भाई कैसे होगा! संजय राउत- फिर भी वह रिश्ता टिका नहीं… उद्धव ठाकरे- इस रिश्ते को बचाए रखने के लिए दोनों ओर से प्रयास होना चाहिए था। मेरी ओर से तो इस रिश्ते को बचाए रखने का प्रयास मैंने आखिर तक किया। संजय राउत- देवेंद्र फडणवीस तो आपका जिक्र ‘मेरे बड़े भाई’ के रूप में करते थे… उद्धव ठाकरे- हां। इन दो भाइयों के बीच मैं कैंची में फंस गया। संजय राउत- फिर आज हिंदुत्व का क्या हुआ? उद्धव ठाकरे- हम हिंदुत्व पर कायम हैं और रहेंगे! उसमें कोई जोड़-तोड़ नहीं है! संजय राउत- मतलब अब विचारधारा एक… उद्धव ठाकरे- सभी की विचारधारा है न। हम हिंदुत्ववादी हैं और रहेंगे ही। कांग्रेस की विचारधारा अलग है लेकिन दोनों-तीनों पार्टियां कुल मिलाकर इस देश में जितनी भी पार्टियां हैं, उनका उदाहरण लें। अपने-अपने राज्य का हित देश का हित इस विचार से कोई अलग है क्या? देश में, राज्य में अराजकता फैलानी है क्या? और फिर भी हम तुम्हारे साथ आते हैं, ऐसा कहकर कोई एक साथ नहीं आया है। कश्मीर में जो विचारधारा की गफलत हुई थी, वैसी यहां हुई है क्या? संजय राउत- कश्मीर में तो अलगाववादियों से हाथ मिलाकर सरकार आई थी… उद्धव ठाकरे- हां न। वहां तो वैसी ही सरकार आई थी। आतंकियों से चर्चा हुई थी। संजय राउत- महाराष्ट्र में ऐसा नहीं हुआ… उद्धव ठाकरे- कहां हुआ? विचारधारा अलग मतलब क्या अलग है? संजय राउत- शरद पवार और सोनिया गांधी दो अलग-अलग पार्टियों के नेता हैं। कल तक आप सभी एक-दूसरे की आलोचना करते थे… उद्धव ठाकरे- हां। मैंने की है आलोचना। संजय राउत- आज आप सत्ता स्थापना के लिए एकजुट हैं। इस पर भारतीय जनता पार्टी लगातार टिप्पणी कर रही है… उद्धव ठाकरे- ठीक है, उन्हें करने दो। लेकिन मेरा सवाल ऐसा है कि पार्टी तोड़कर लाए गए लोग आपको मंजूर हैं तो फिर उस पार्टी से हाथ मिलाया तो क्या फर्क पड़ता है? उस पार्टी के बड़े-बड़े नेताओं को भारतीय जनता पार्टी ने खुद में शामिल कर ही लिया है न। कांग्रेस के कितने नेताओं को उन्होंने लिया? उन्हें विधायक क्या, सांसद क्या अथवा अन्य कई पद भी दिए हैं। वे भी उसी विचारधारावाले थे न? संजय राउत- अब आप चुनाव कहां से और कैसे लड़ेंगे? यह भी आखिर तक रहस्य ही रखनेवाले हैं? उद्धव ठाकरे- रहस्य नहीं। अगले दो-चार महीनों में यह फैसला लेना ही होगा। संजय राउत- आप विधानसभा में जाना पसंद करेंगे या विधान परिषद में? उद्धव ठाकरे- आपको बताऊं क्या! असल में मुख्यमंत्री बनने से पहले मैं उस विधानभवन में जीवन में दो-चार बार से अधिक नहीं गया होऊंगा। ऐसी देश में परिस्थिति पैदा हो गई होगी कि कोई व्यक्ति, जिसका वहां जाने का पहले कभी सपना नहीं था। वह व्यक्ति आता है वह भी मुख्यमंत्री बनकर। मैं हमेशा कहता हूं कि जिम्मेदारियों से मैं कभी पीछे नहीं भागा और भागूंगा भी नहीं। इसलिए किसी को भी आहत किए बगैर जो संभव होगा, वह मैं करूंगा।
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