Wednesday, May 1, 2019

जल संकट चुनावी मुद्दा क्यों नहीं?

माॅनसून से पहले मार्च से अप्रैल तक होने वाली बारिश में 27 फीसदी की कमी रिकार्ड की गई है। माॅनसून से पूर्व बारिश देश के कुछ हिस्सों में खेती के लिये काफी अहमियत रखती है। सबसे ​अधिक 38 फीसदी की कमी उत्तर-पश्चिम हिस्से में दर्ज की गई। इस क्षेत्र में उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड राज्य आते हैं। मौसम विभाग ने 31 फीसदी कमी दक्षिण भारत में बताई है जिसमें केन्द्र शासित प्रदेश पुड्डुचेरी के अलावा गोवा एवं तटीय महाराष्ट्र आते हैं। केवल मध्य भारत में सामान्य से पांच प्रतिशत ज्यादा वर्षा दर्ज की गई है। बारिश की कमी से स्थिति काफी भयावह लगती है। फसलों की रोपाई के लिये मानसून से पहले बारिश की जरूरत होती है।

गन्ना, कपास जैसी फसलों को सिंचाई की अधिक जरूरत पड़ती है लेकिन उन्हें मॉनसून पूर्व बारिश की भी अतिरिक्त जरूरत पड़ती है। मानसून को लेकर अलग-अलग अनुमान सामने आ रहे हैं। देश के अनेक हिस्सों में सूखे की वर्तमान स्थिित तथा जून-जुलाई में कमजोर मॉनसून की आशंका अर्थव्यवस्था आैर खाद्यान्न निर्भरता के लिये काफी चिंताजनक है। यदि मानसून कमजोर रहा तो यह लगातार तीसरा वर्ष होगा। खरीफ की फसलों की बुवाई के महीनों में कम वर्षा होने का सबसे ज्यादा असर मध्य और पूर्वी भारत पर हो सकता है।भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा संचालित प्रणाली ने पिछले माह जानकारी दी थी कि देश का 42 फीसदी जमीनी हिस्सा सूखे की चपेट में है। बिहार, आंध्र, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तर पूर्वी राजस्थान के हिस्से, तमिलनाडु और तेलंगाना सूखे से सर्वाधिक प्रभावित राज्य हैं।

इन राज्यों में देश की 40 फीसदी आबादी (50 करोड़ के लगभग) निवास करती है। कई राज्य सरकारें अपने कई जिलों को सूखाग्रस्त घोषित कर चुकी हैं। भारत का 6 प्रतिशत भू-भाग असाधारण सूखे की स्थिति से जूझ रहा है, जो बीते वर्ष समान अवधि में 1.6 प्रतिशत क्षेत्र से लगभग चार गुणा अ​िधक है। अगर देश में फिर सूखे के हालात पैदा हुए तो सबसे ज्यादा मार किसान और मजदूर को झेलनी पड़ेगी। किसानों काे ऋण माफी का कोई लाभ नहीं मिलेगा, मजदूर बेरोजगार हो जायेंगे। इन सब परि​स्थितियों को देखते हुए केन्द्र और राज्य सरकारों को अभी से ही सतर्क हो जाना चाहिए। विडम्बना तो यह है ​िक देश में जल संकट को लेकर कोई भी राजनीतिक दल इस पर चर्चा नहीं करता। न तो जल संकट चुनावी मुद्दा बनता है और न ही जल संकट के समाधान की कोई कार्य योजना पेश की जाती है। चुनावों में किसानों और मजदूरों के लिये लुभावने वादे किए जाते हैं लेकिन उनकी समस्याओं के निराकरण पर कोई बात नहीं की जाती।

देश के लोगों को तो स्वच्छ पेयजल भी नसीब नहीं। हम लगातार भूजल का दोहन करते जा रहे हैं और भूजल का स्तर लगातार गिर रहा है। दुर्भाग्य है कि देश की राष्ट्रीय जल नीति भी इस सम्बन्ध में मौन है। नीति आयोग भी केवल आंकड़े जारी कर देता है लेकिन समाधान की कोई रूपरेखा पेश नहीं करता। भारत की अर्थव्यवस्था आज भी कृषि पर आधारित है। खाद्यान्न उत्पादन प्रभावित हुआ तो किसान के सामने मुसीबतों का पहाड़ खड़ा हो जायेगा। किसान की आय नहीं होगी तो वह बाजार जायेगा नहीं। बाजार का माल नहीं बिकेगा तो उत्पादन घटेगा। इससे अर्थव्यवस्था की गति प्रभावित होगी, विकास अवरुद्ध हो जायेगा। पूर्व माॅनसून बारिश कम हो जाने से देश के जलाशयाें के जल स्तर में कमी आ चुकी है। अगर गर्मी से तपती धरती को बारिश की पर्याप्त बूंदें न मिले तो प्रकृति का पूरा जीवन चक्र संकटग्रस्त हो जाता है। पानी के बिना न पौधे, न जीव।

हम इस दिशा में क्यों नहीं सोचते कि बारिश पर कृषि की निर्भरता कम कैसे की जाये। तालाब, पोखर दिखाई नहीं देते, हम केवल कंक्रीट का जंगल उगा रहे हैं। तालाब और कुएं अपने आप में एक पूरी पारिस्थितिकी है। जो न जाने कितने जीवों के फलने-फूलने का सुरक्षित ठिकाना बनती है। अब न तालाब बचे और न कुएं। न ज्ञान बच रहा है न विज्ञान। प्राकृतिक जल स्रोत सूखे और पानी की समस्या का कारगर इलाज थे। हमारे पास पूर्वजों के सफल अनुभवों की गाथा है। फिर भी हम मौन बने हुए हैं। हर साल सूखाग्रस्त लोगों को पानी पहुंचाने के लिये ट्रेन भेजी जाती है। लोग पानी के लिये एक-दूसरे को नोचने लगते हैं। ऐसी बेचारगी दूसरे देशों में कम ही देखने को मिलती है। भूजल हमारे जीवन का रस है। हमें इसके रिचार्ज करने की व्यवस्था करनी होगी। हमें जल संग्रह के लिये ठोस कार्यक्रम चलाने होंगे। देश के कई भागों में पानी अच्छा खासा है लेकिन हम उसका उपयोग नहीं कर पा रहे।

हमें गांव-गांव जाकर लोगों को इस बात के लिये तैयार करना होगा कि वे जल संग्रह करें। ग्रामीण मजदूरों को जल संग्रह के काम में लगाया जाना चाहिये। किसानों को दक्षिण भारत की तरह उन फसलों की बुवाई करने के लिये तैयार किया जाना चाहिये जो कम पानी में भी तैयार हो जाती हैं। क्या कोई राजनीतिक दल इस बारे में सोचेगा? अगर हम हर स्तर पर जल बचायें तो अलनीनो का प्रभाव नगण्य ही होगा। देश की जनता को भी चाहिए कि जल संकट को लेकर अपनी खामोशी तोड़े अन्यथा देश आपदा का ​शिकार हो जायेगा।



from Punjab Kesari (पंजाब केसरी) http://bit.ly/2WfMfiz

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